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मोतीलाल छापरवाल


भेरूजी भोला नहीं, रूप्यो नारयल ले'र।
गुमग्यो सो लासी घरै, हेमहार ने हे'र।815
भोट-भोट मोटा हुआ, निर्धनता में प्याज।
वो के बै बादाम को, छिलको पचै न आज।816
भोजन में मिन्तर मधुर,चीजां धरी अनेक।
विष ज्यूँ लागी नार को, चढ्यो थोबड़ो देख।817
भोला ने चातुर करौ, पद ऊपर आरूढ़।
काम बणावे आपणों, खूब बणाकर मूढ।818
भोग करो, पद ऊपर आरूढ़।
काम बणावे आपणों, खूब बणाकर मूढ़।819
भोला भूल्यो राह तो, अबही गेले लाग।
मंजिल दूरी है नहीं, कर आलस रो त्याग।820
भोपा के भटकै मती, अरी मानजा केण।
ये टाबर देसी कंई, थने बावली बेण।821
मन छोटो वां सूं अधिक, आस करो मति कोय।
बकरी काँई दे सकै, दूध पसेरी दोय।822
मन में मेल न होय तो, शत्रु मित्र बण जात।
ई में रज सन्देह नहिं, या पतवाणी बात।823
मत राखे मन स्वर्ग या, मोक्ष आदि की चाह।
पर की पीडा हरण की, पकड़ सोहती राह।824
मनख मिलै खोज्याँ थकाँ, लाखाँ रै बिच एक।
ज्यूँ भाटा हर ठाँ मिलै, होरो मिलै कठेक।825
मन थारो देखी अरे, अजब अनूठी चाल।
छन में भगै आकाश थूँ, छन में भगै पताल।826
मनख करै संसार में, सदा मनख रो काम।
काम करयो सो ठीक पण, काँ लेवे थूँ नाम।827
मन सूँ चावो मित्र को, सांचो सही सुधार।
चौड़े मत केवो कड़ी, छानै काँनै जा'र।828
मत जावै ईं राज में, हाकि तोड़ी दौड।
काम कढाणो होय तो, बाबू के कर जोड़।829
मदिरा को रहवै नशो, घड़ी एक या दोय।
सत्ता को रहवै सदा, उतर्यां ही कम होय।830
मनख जूण हर बार नी, थांरी-थांरी छोड़।
जो चावे कल्याण तो, हरिचरणाँ चित्त जोड़।831
मँह भाटा पण बारणे, घणो दिखावे हेत।
अस्या मित्र सूँ रेवणो, मोतीलाल सचेत।832
मनख पणो किण मांयने, ईंकी एक पिछाण।
अपकारी को हित करै, किचित करै न हाण।833
मसल एकम सूर या, सदा राखणी याद।
तपतो सूरज तेज पण, ढलै दुपेरी बाद।834
मर्या मोखला जनम लै, और जनमसी आर।
पग धरती पै टेक रै, पियो पावणो पार।835
मन काठो राखै नहीं, भरै पेट नै डाट।
फीस दवायाँ मांहि अब, कुटा वेद सूं टाट।836
मन में जद राजी हुवे, हार पहरती दाण।
काली झंडी देख कां, दुःख मानै दीवाण।837
मर जासो कुढ़ण्यो परो, पर की बढ़ती देख।
दवा वैद्य खोवे मती, दवा न लगसी एक।838
मणि माणक धन आदि सूँ, जो नज है सम्पन्न।
बुझी न बींरी भूख तो, वीं सम कुण निरधन्न।839
मत देखो सूरत-शकर, मत पूछो कँई जात।
मत देतां देखो अकल, और बात बहियात।840
मरद हार माने नहीं, सबनें दीखै हार।
बगत जूझण कूँ आय जद, सदा रहत है त्यार।841
मन मैलो बहु स्वारथी, साथी झेलो देय।
नीं पकड़ै गेलो भलो, छीन-झपट में रेय।842
मन्दिर माथे बैठ काँ, कर रयो मदिरा पान।
स्थान बता पण्डित अस्यो, जठे न हो भगवान।843
मती आगलसी आश पै, काम हाथ को छोड़।
मेघ गरजती देखकर, गागर ने मत फोड़।844
मती बोल चुपचाप सुण, बोलरिया रा बोल।
मोती वींरा चरित रो, तुरतां पड़सी बोल।845
मधु मटको माथे धरन, मधु बेचण ने जाय।
पण वाणी टु बोत सो, बूंद नहीं बिक पाय।846
मनखपणा की एक या, सीधी सरल पिछाण।
दर्द मिटावे और को, दतर्द आपणो जाण।847
मथ लिखो झूठो पानड़ी, मत दे झूठी साख।
हितकर नी अपराध ये, सीख याद या राख।848
मन चावे थारो जस्यो, आछ्यो भोजन पाँव।
पण दूजा चावे जस्यो, भलो पहन पहराव।849
मालण थूं आई कठै, सेव अंगूला ले'र।
ये लेण्या दीखै अठै, गाजर गूंदा बेर।850
माँग्याँ सू घालै नहीं, कदी दूध री घूंट।
गरज पड्या दै भैंस अर, दै चढ़बा नै ऊँट।851
माता से ही विश्व में, हुए पुरुष विख्यात।
योग्य बनाना पुत्र को, है माता के हाथ।852
पांग करै दूजाँक नै, होता थकाँ करोर।
कुण गरीब बींका जस्यो, जग में दूजो और।853
मान मिल्यो धन भी मिल्यो, मिल्यो महत अधिकार।
मन मुड़ियो हरि ओर नीं, तो सारा निस्सार।854
माफी रहवै माँगतो, करतो रहवै भूल।
तो जाणो पर आँख में, नाँक रियो ऊ धूल।855
मान देवणो आपणै, घर आया नैं पार।
अलगुण कदी न देखणा, बाँका वांकी लार।856
मालाधारी सेठ थे, गजब कर्यो अन्धेर।
घी में दीन्हो डालडा, मण में पैती सेर।857
माँफी लीन्ही मांग ज्यो,भूल कर्या रे बाद।
तो नी मन में राखणी, बात पाछली याद।858
मात-पिता घ में लड़ै, दिन में दो-दो बार।
बाल वृन्द बणसी कस्या, मन में करो विचार।859
माणक मोती मोखओला, हेम रजत भरपूर।
तो भी थारी ना बुझी, भूख अरे वनसूर।860
माफ करै अपराध नीं, पाछो बदलो लेय।
तो वांरा सब शत्रु भी, कां जद पाछे रेय।861
मात-पिता का नेण सूं, आंसू ढलग्या दोय।
सुत डूबै वी समंद में, बचा ना पावे कोय।862
मांग करै जजमान सूँ, जाचक जागा भाट।
समधी सूँसमधी करे, वे कँई वां सूँ घाट।863
माँ-बार के जीवता, संतति नाम कमाय।
खुशई होत माँ-बाप ने, मन ही मन अधिकाय।864
मांग करयां सूं रिण भली, आछ्यो दे भी देय।
जो लेणो, लो सुजन से, व्याज भली बहुत लेय।865
मान होय तो रेवणो, चारटका ही ले'र।
बिना मान नीं लेवणो, नित रो सोनो सेर।866
मिन्तर चालै डपट अर, साथी चुपका रेय।
चो साथी भी साथ ही, कुजस बुराई लेय।867
मिसरी नांकी मोकली, सिल पै देख्यो घोट।
नीम नीच थैं नी तज्यो, कड़वापण रो खोट।868
मियां साब राजी हुवे, लागै नहीं छदाम।
कांई बिगड़े आपणो, करता थका सलाम।869
मित्र सुणे न बात रज, भलो सुझाता संच।
रूठे तो दो रुठबा, परवा करो न रंच।870
मन्तर हो या हो सगो, भाई हो या बेण।
नेह तुड़ा करवाय दे, द्रव्य लड़ाई देण।871
मिहनतर कर ईमान सूं, द्रव्य कमाबो ठीक।
बिन मिहनत अर पाप सूँ, भलो मांगबो भीक।872
मिहनत कीदा अकल सूँ, धन दौड़यो घर आय।
अकल चौगुणी होय जद, आछ्यां खरच्यो जाय।873
मिल-जुल रेवे गाँव सब, रार नहीं मन भाय।
नकली नेता स्वारथी, चलता आग लगाय।874
मित्र दोष ठाँकै सदा, निन्दक देत उधार।
हित कीं में ई बात रो, चतुरां करो विचार।875
मिठ्बोल्या खल कै कदी, मोती भड़े न लाग।
मोर्यो मीठो बोलणो, निगल जात है नाग।876
मुल्लां कह अल्ला कहो, पण्डित कह ओंकार।
नाम कई पर एक है, सबको सिरजनहार।877
मुख चढ़ियो राखै सदा,  हँसे कदी नीं हुस।
हंसबा में लागै कँई, कां रेवै कंजसू।878
मुख उघाड़ चल कामणो, म्हूं नीं काढू बाँक।
ओदर कांधा और कुच, ये तीनो तो ढांक।879
मूणां भरता धिरत जे, खायां भरता नाज।
अब छुकल्या में नाज अर, शीशा में घी आज।880
मूरख कह दै भूल सूं, तीन पाँच नै सात।
आठ बताओ आप तो, कदी न मानै बात।881
मूरख जीवित जगत में, तो धूर्तां के मौज।
उड़ता रेवै ठाठ सूं, मेवा मक्खन रोज।882
मूख नै कह देखलो, लागै न सुलटी दाय।
को पूरब की आप तो, पच्छम कांनी जाय।883
मूरख की कांई कहूँ, घर का दीखै गैर।
आपणां कै लाता धरै, पर का पकड़ै पैर।884
मूढ़ हाथ की रेख की, कँई करावै छाण।
लेख बदल दै साहसी, निज हिम्मत कै पाण।885
मूढ़ मोहणी जूढ है, झूठा डाकण भूत।
मत उलझो चे चूगती, ठगण्या की करतूत।886
मूंगी पड़सी या कदी, अरे बावला रोल।
बैठ कांच का भौन में, मत ना फैंके ढोल।887
मूरख कुण सब सूँ बड़ो, बात बता दूँ संच।
पर की भूलां देखकर, सीख न लेवे रंच।888
मेलै जल धोयां कंई, गाबो उजलो होय।
यूँ ही जासी फालतू, साबण मेहनत दोय।889
मोती तातो रह मती, तातो रहबो खोट।
ताता लोहार ऊपरे, पड़ै धमाधम चोट।890
मोट्याराँ नालो मती, घी शक्कर की बाट।
दुर्लभ करदी आज ये, जो मक्की की घाट।891
मोटा ऊपर ठेट सूँ, है छोटां रो भार।
मटकी ऊपर चुखलियो, देख परेंडे जार।892
मोहग्रस्त होतो रहे, जो साधक हर बार।
नीं होसी ईं पार ऊ, नीं होसी वीं पार।893
मोटर बँगला आदि का, सुण ले रे शौकीन।
जग पूजा वांरी करी, ज्यांरे ही कौपीन।894
मोती बणनो मितव्ययी, करपण बणनो नांह।
या दोवां में आंतरो, समझो हिय रे मांह।895
मोटा चालै रीत सर, छोटा रखै न होश।
केहरी चालै ढँग सूँ, फदकै मृग खरगोश।896
मोती नर ने परखताँ, देर लगै नीं लेश।
तीन बात परखाय दे, संगत वाणी वेश।897
'मोती' कदी  लागणो, अस्या मनखी री लेर।
लुढ़कण लोढी की तरां, गुड़तां करै न देर।898
मोती थूँ बोले भलो, मंच ऊपरे खूब।
मन फूछ्यो पण थूँ है कठै, ग्यो चिन्ता में डूब।899
मोटा-मोटा सूं भिड़े, छोटा सूँ न भिडन्त।
तृण सूँ नीं तरू सूँ अड़े, पवनदेव बलवन्त।900
मोतीलाल सपूत की, सांची एक पिछाण।
भला काम कर बाप सूँ, अधिक कराले जाण।901
मोती ईं संसार में, वी सम कोण निकाम।
बगल मांय जींरे छुरी, मुक्ख मांयने राम।902
मोती थूँ डरपै मती, ईश्वर थारै साथ।
समरथ नाथ दयालु सो, चिन्ता री कँई बात।903
मोती जींरी बात, सनमुख तो कर नी सके।
पिछवाड़ दिन रात, करबा सूँ भूंडो लगै।904
मोती कोई मनख का, दिन उतार पे आय।
खुद का घर का डांड सूँ, आँख फूट जद जाय।905
मौन धार अर बोल मृदु, मोती कर संकेत।
असत बोलण्यो बात सब, घणी बांत कह देत।906
मृदु लोभी खल मनखसूँ, सदा रेवणो दूर।
बादेलो शायद कदी, चाकू मेले सूर।907
म्हें देख्यो पर आसरै, काम सरै नी ठीक।
खुद ही जूझो काम काम में, पर के कांई पीक।908
म्हें देखी ईं राज में, कई बार या बात।
चोर बड़ो हवो बरी, सुंई चोर फ ँस जात।909
म्हूं पूछूँ थूँ बोल मन, अतरो चिन्तित कांह।
सच कह दूँ भगवान पै, थँने भरोसो नांह।910
याद करूँ कूँ कर भला, यां पोथ्यां री पोट।
औषध हो तो पीय लूँ, शिला ऊपरै घोट।911
याद राखणी एक या, सदा नीति की बात।
भूल-चूक नीं लागणो, स्वारथियाँ रै साथ।912
या शिक्षा आई कसी, हाय राम रे राम।
सबने सूझै नौकरी, करै न दूजो काम।913
यूँ बाताँ चाहे भली, लाख सुणाद्यो आप।
रित बिना पड़सी नहीं, मनख ऊपरै छाप।914
यूँ देखो मानै कुणी, कह देखो सौ दाण।
समंद आण पाँ जद पड्यां, राम चढ़ायो बाण।915
यो भूषण है शुद्ध कन, ईं में भरियो खोट।
मेल अगन में काढ़ अर, देर देख ले चोट।916
रंग देख रीझै मती, धर्यो रंग में कांय।
काली पण कोयल कसी, गुण सूँ लागै दाय।917
रंगरूप नी देखणओ, नहीं देखणी जात।
वोट देवता देखणी, देश हित्त री बात।918
रगड़-रगड़ मांज्यो घणो, चमकण लाग्यो ठांव।
पण पीतल को पात्र कद, बिके हेम के भाव।919
राख भरोसो राम रो, सोच करै है काँय।
जनम्याँ सूं पैली धर्यो, दूध कूचां रै माँय।920
राड़ जठै ठहरै नहीं, लक्ष्मी मार्ग छोड़।
मेल देख आवै घरै, बिना बुलाई दोड़।921
राईं नां कर कूप में, खोजो तो मिल जाय।
कर सूँ छुट्यो राज में, कागद हाथ न आय।922
राज और मानो मती, एक मान लो बात।
शिक्षा सूँपो गाँवरी, शिक्षाविद् रे हाथ।923
राम कृपा होतां बणै, बड़ो काम आसान।
एक झपट्टा माँय नै, निधि लाद्यो हनुमान।924
राड़ पड़ै दो बहीच तो, बात बता दूँ साव।
कायर लोपी पंच सूँ, नीं रवाणो न्याव।925
राज भजन करज्यो सदा, सदा बोलज्यो सत्त।
पण करज्यो ईं बात रो, रती दिखावौ मत्त।926
राजी रो रह जावजै, रहणो पड़ै मजूर।
करणी असी न हाकमी, कहणों पड़ै हजूर।927
राड़ बुझासी दोयरी, असली तो जल नांक।
नींच सदा सुलगावसी, बीच बलीथो फांक।928
रामबाण दोनी दवा, वेदराज बे शक्क।
आण लगी सो नीं लगी, हवा नीकलगी फक्क।929
राड़ लड़ै सिद्धान्त की, नेता लेकर आड़।
सच्च पूछो तो अधिकतर, सत्ता खातर राड़।930
राजनीति में कुशल जन, जीं सूँलेत सहाय।
पग बींका ही काटता, किंचित नीं सकुचाय।931
राग द्वेष छल छिद्र अध, मन णंह भर्या अनेक।
साधन केवल नाश रो, हरि को सुमरिन एक।932
राजनीति कतरी बुरी, म्हे देखी बहु बेर।
मित्र-मित्र की नीं करै, टांग खींचता देर।933
राड़ बुझासी सुजन तो, भभकण देसी नांह।
दुर्जन निश्चय फेंकसी, पूलो बलती मांह।934
राजनीति रा ज्ञान रो, आखर भणियो नांह।
कुम्भकार महता वण्या, उजड़ गाँव रै मांह।935
रे न सकै ये आज का, दो नेता इक ठोर।
पटक्या रहवै एक नै, गुत्थम-गुत्था होर।936
रे जावो चाहे भली, धन बिन कोई दीन।
पण रहणो आछ्यो नहीं, मनख बुद्धि सूँ हीन।937
रेल, तार, पथ डाकघर, बस बिजली इस्कूल।
छात्र ! अणां रो तोड़बहो, घणीं भयंकर भूल।938
रोज लड़ै रूसै भसैं, अडै घमोड़ै बाल।
पटक-झटक रोवै करै, या कुनार की चाल।939
रोल कदी करणी नहीं, रो बधावै रार।
चलती देली रोल में, म्हें जूता पैजार।940
रोग बड्यो काढ्यो न तो, अन्त कर देय।
बेल कोहलो भंड महं, बड बढ़ फोड्या रेय।941
रोग, काल, दुःख राज को, आण पड़े जद होत।
असली की पहिचाण तो, यूँ तो मिन्तर बोत।942
रोक्या सूँ गुणवान की, बढ़ती रूकै न ख्यात।
रवि प्रकाश काँई रूकै, आडो दीदां हाथ।943
लम्बी -चौड़ी बात मूँ, चातुर काढ़ै सार।
तैरू लावै चीज ज्यूं, जल में डूबको मार।944
लत्तो मिलै न बगत पै, मिलै न रोटी-दाल।
सतपथ चालणहार रो, ठौड़-ठौड़ यो हाल।945
लग्यो तीर तलवार को, हुवै एक दिन साव।
पण वाणीं रो नी मिटै, बरसा तोड़ी घाव।946
लछमी नैं परिवार की, खट-खट लगै न दाय।
लाख करो ठहरै नहीं, छोड़ तुरन्ता जाय।947
लघु जन मारै विभव रो, झड़बेरी ज्यूँहाक।
श्रीफल, तरु फल विभव ज्यूँ, बडोज राखै ठांक।948
लड़ता नै समझावणो, नहीं लगाणी पाण।
पाण चढ़ाबो है बुरो, पाण लुवादें प्राण।949
लपर-चपर सूँ मुढ़री, बढ़ जावे जद ख्यात।
ूपट चलै ऊ कां सुणे, समझदार की बात।950
लघु मोटारो आसोर, पाया यूँ बढ़ जाय।
बढ़ै रुख को जीं तरा, बेल सहारो पाय।951
लक्खणदेख्या नीच का, म्हें कतरा ही बार।
सूण बिगाड़ै और का, खुद री नाक कटार।952
लघु नै भूल्यो देखकर, बिजली को आराम।
बिजली गो जद रात नैं, दियो दियो ही काम।953
लड़बा आगै करगसा, छोड़-छाड़ कर लाज।
लाउड स्पीकर जाण के, काढ़ रियो आवाज।954
लक्खण कह दूँ मनख रा, बिन देख्या ही आव।
बैठक रो पत्तो बता, और बता पेराव।955
लपर-चपर करलो भली, निबल जोर सूँ बोत।
जोरावर रा ऊपरे, असर रंच नी होत।956
लटक्या फाँसी जेल ग्या, वन-वन भटक्या शूर।
वां भगतां नै भूलग्या, गादी पार हजूर।957
लाला कां गपशप करै, भणबा भेज्यो बाप।
बाँह चढ़ा गुरु नै कहयो, बार पधारो आप।958
लायक र जद नी पजे, नालायक औलाद।
धाक जमावे चुगल बण, बाप मर्यां के बाद।959
लाड़ी कह पण सास थूँ, करै न मन सूँ लाड़।
खोड़ाँ काढ़ै काम में, चलता माँडे राड़।960
लायक करे अजोग ने, ईं बिध चातुर लोग।
ज्यूँ घड़ पत्थ टोल ने, राज पूजबा लोग।961
लाड़ी नें ऐ सास थू, बेटी ज्यूँ ही मान।
घर में रेसी शांति सुख, बारै बढ़सी मान।962
लिया रेवस्यूं काल रिग, कुर्क करा कर माल।
पेली आग्यो काल ओ, कुर्की लेकर काल।963
ले मेल्यो ज्यो समझ रो, वेहद माथे बोझ.
वां ने थूँ सिख देर कां, जीभ घिसाये रोज।964
लोकतंत्र को है बठे, हरि ही रक्षक एक।
हरा देत विद्वान नै जठे अँगूठा एक।965
लोग भली शोभा करै, भली लगाओ दोष।
सेवक रै ईं सूँकंई, सबही में सन्तोष।966
लोगां सामें और की, हँसी उड़ा कर आप।
आप स्वयं की अकल को, करा रिया हो नाप।967
लोभी को मन जीतताँ, कांई लागै देर।
पि ोय फेंकदो सामने, तुरतां होसी लेर।968
लोग तुल्या अन्याय पै, रोक्या रूकै न रंच।
छोड़ सभा ने चाल थूँ, करबा दै परपंच।969
लोकतंत्र में गुण घणा, एक बात रो खोट।
मूरख अर विद्वन रो, गिणै एकसो वोट।970
लोही पीटे लोह ने, अचरज करणी काँह।
यो खल अपणी जान में, कूट लजावे नांह।971
लौटावै पाछो नहीं, ऋण लीदां रै बाद।
तो जाणों वीं बणिक नै, नहीं कमाण याद।972
वणिक करै दुह ओर सूँ, लेतां-देतां बार।
छोलै मारै मूँद सूं, जीं विच काठ कुठार।973
वार कर्या होवै कँई, अरि कैदो ही हाथ।
रक्षक है जद आपको, सहस भुजा को नाथ।974
वाणी मीठी होय अरू, उजलो होय चरित्त।
दुशमण वींरे एक नीं वींरे सगला मित्र।975
वा मन्दिर का देव कै, म्हूँ देऊँ बस धोक।
जीं कै मांही जावता, नीं कोई नै रोक।976
वा औषध औषध नहीं, ज्वर तो दीनो तोड़।
पण रोगी के रोग वाँ, गईदूसरो छोड़।977
वादो कर कोईक सूँ, वादो कीदां बाद।
पूरो करणो अवस ही, बात राखणी याद।978
वादो कर आयो घरै, जार करी नी पूछ।
कां दीन्ही वी मरद कै, जदे विधाता मूँछ।979
वार करै मत और पै, और करे तो वार।
सीखो कला बचाव की, समझदार सूँ जार।980
विनती शिक्षा शास्त्र की, जाणकार सूँ एक।
काढ़ो शिक्षा मांय नूँ, दीखै दोष कठेक।981
बिन कुठार कटसी नहीं, भारी भरकम पेड़।
भोला थूँ, काटण लग्यो, ले रेजर की ब्लेड।982
विषय ओर विष दोयरो, त्याज्य बतायो संत।
विषय पतन कर देय अर, विष कर देवे अन्त।983
बींरो करियो होवसी, थारो कर्यो न होय।
वींरा करबा रो भलो, पहली लखै न तोय।984
वीं सासू सूँ बीनणी, कानी राजी रेय।
धिरत सुधारै साग पण, मान बहू नै देय।985
वीं घ ऊपर जाणजे, सदा राम की मेर।
जीं घर आवे छाछ ने, पात्र पड़ौसी लेर।886
वृद्धपणों कतरो बुरो, हाफै चलता बूंत।
कम दीखै, कमती सुणै, दै धोती में मूंत।887
वृद्धपणो सुख सूँ कटै, कला याद जद होय।
रोय-रोय नेतर कटै, बात न पूछै कोय।888
बे मन सूँ मण देय तो, दान लगै नी दाय।
मन सूँ मन ही पाव मण, संस्था ले हरषाय।889
वे सुविधा नीं पात जो, काम करै दिन-रात।
म्हें देखी ईं राज मे, गधा पंजीरी खात।890
बैद्य होर बीमार नै, चरको बोलै बोल।
पहली चाकू लेर थूँ, जीभ आपणी छोल।891
व्यंग कदी कसणों नहीं, करड़ो लागै जार।
ज्यूँ गोफण रो कांकरो, करै करारी मार।992
व्यंग बाण चाले चले, घर में चले दुपांत।
वीं घ में सुख शान्ति अर, एको रह किण भांत।993
शर्माजी शिव-शिव करै, रब-रब बोले शेख।
अन्तर केवल नाम रो, धणी एक रो एक।994
शासन आसन ऊपरै, दुर्बल जावै बैठ।
अन्न बिना तरसै मनक, शत्रु करै घुसपैठ।995
शासनक ठीला होय तो, दुष्ट लोग दिन रात।
घर बार का देश में, करता रह उत्पात।996
शाक मान अण्ड भलों, ईने गिणो न पाप।
म्हूँ पूछूँ किण रूंख पै, यो फल तोड्यो आप।997
शासक ढीलो होय तो, लोभी चूकै कांह।
आज देख सरकार लो, गोचर्बीं घी माँह।998
शासक ढीलो होय तो, दुष्ट वृन्द दिन-रात।
सुख सूँ रहबा दे नहीं, करै खूब उत्पात।999
शिक्षक जो इस्कूल का, छोड़ दियो ईमान।
तो जाणो वीं देश पै, कोप गियो भगवान।1000
शिलालेख खोदै नहीं, नीं मांडे कागद्द।
मुख सूँ खोले बात जो, पूरी करै मरद्द।1001

 

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